क्यों कहते हैं हमारे पूर्वज और हमारे धार्मिक पुस्तक पृथ्वी शेषनाग के फण पर क्यों है ?

प्रथम दृष्टि :--

हमारे शास्त्रोंमें भगवान् विष्णु शेष पर लेटे हुए हैं!
शेष अर्थात् सर्प क्यों ?

#ब्रह्माण्डपुराणके_अध्याय_22_में_इसका_उत्तर_है :- प्रश्न उठता है :--

#भूमन्ति_कथमेत्तानिज्योतिषि_दिविमण्डलम् ! #अव्यहेन_च_सर्वाणि_तथैवासंकरेण_वा !!

अर्थात् - "ये चमकने वाले तारागण जुड़े-जोते न होते हुए भी बिना किसी टकराव के कैसे घूम रहे हैं ?"

उत्तर -
#ध्रुवस्य_मनसा_चासौ_सर्पते_ज्योतिष्ागणः । #सूर्यचन्द्रमसौ_तारा_नक्षत्राणि_ग्रहैः_सह ।। #वर्षा_धर्मो_हिम_रात्रि_संध्या_चैव_दिनं_तथा । #शुभाशुभे_प्रजानां_ध्रुवात्सर्व_प्रवर्तते ।।

अर्थात् - "सूर्यचन्द्र ,नक्षत्र सहित यह सृष्टि ब्रह्माण्ड सर्पाकार है और इसकी गति भी सर्प जैसी मोड़ मोड़कर चलनेवाली है । ध्रुव इसका अध्यक्ष है । सारे ऋतु,दिन ,रात ,और जीवों का सुख दुःख सभी (सर्पाकार गति )से होता रहता है ।"

महान् खगोल वैज्ञानिक आर्य भट्ट ने आर्य भटीय कालकल्पपाद -9 में वर्णन करते हैं :--
#उत्सर्पिणी_युगार्धं_पश्चादसर्पिणी_युगार्धं_च । #मध्ये_युगस्य_सुषमादावन्ते_दुःष_मान्यस्यात् ।।

अर्थात् :--- कल्पकाल में युगार्ध में सृष्टि ब्रह्माण्ड का अवसर्पण और दूसरे युगार्धमें उत्सर्पण होता रहता है।

उस अवसर्पण और उत्सर्पण के भी दुःषम और ऐसे 26000 -26000 वर्षोंके दो काल होते हैं !"

यह ब्रह्माण्डकी वैज्ञानिक मीमांसा है आध्यात्मिक मीमांसा तो भक्तिके द्वारा ही सम्भव है।

तब यही सर्पिलाकार ब्रह्माण्ड शेषजी के फण पर उच्छलित होता है और उन शेषजी की कुण्डली में भगवान् महाविष्णु ।

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द्वितीय दृष्टि से

#शेषनाग:

आपने सुना होगा कि शेषनाग जी के फन पे पृथ्वी टिकी हुई है और जब वो थोड़ा सा हिलते है तो भूकंप आता है

देखते हैं:

"अधॊ महीं गच्छ भुजंगमॊत्तम; सवयं तवैषा विवरं परदास्यति।
इमां धरां धारयता तवया हि मे; महत परियं शेषकृतं भविष्यति।।"

(महाभारत आदिपर्व के आस्तिक उपपर्व के 36 वें अध्याय का श्लोक )

इसमें ही वर्णन मिलता है कि शेषनाग को ब्रम्हा जी धरती को अपने ऊपर धारण करने को कहते है और क्रमशः आगे के श्लोक में शेषनाग जी आदेश के पालन हेतु पृथ्वी को अपने फन पे धारण कर लेते है

लेकिन इसमे लिखा है कि धरती के भीतर से धारण करना है न कि धरती को बाहर खुद को वायुमंडल में स्थित करके पृथ्वी को अपने ऊपर धारण करना है।
तो अब शेषनाग को समझते हैं:

[ विराम प्रत्ययाभ्यास पूर्वः संस्कार शेषोअन्यः ]

रुक - रुक कर, विशेष अभ्यास , पूर्व के संस्कार [चरित्र /properties] हैं तथा शेष माइक्रो/सूक्ष्म लहर हैं।

कुल नाग (दीर्घ तरंग) और सर्प (सूक्ष्म तरंग)1000 हैं।

शेषनाग {सूक्ष्म /दीर्घ तरंग} या शेषनाग की कुण्डलिनी उर्जा की संख्या 976 हैं। 24 अन्य नाग या तरंग हैं।
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आधुनिक विज्ञानियों के अनुसार पृथ्वी:

यांत्रिक लक्षणों के आधार पर पृथ्वी को स्थलमण्डल, एस्थेनोस्फीयर , मध्यवर्ती मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड मे बनाया जाता है। रासायनिक संरचना के आधार पर भूपर्पटी , ऊपरी मैंटल , निचला मैंटल , बाह्य क्रोड और आतंरिक क्रोड में बाँटा जाता है।

ऊपर की भूपर्पटी प्लेटों से बनी है और इसके नीचे मैन्टल होता है जिसमे मैंटल के इस निचली सीमा पर दाब ~140 GPa पाया जाता है। मैंटल में संवहनीय धाराएँ चलती हैं जिनके कारण स्थलमण्डल की प्लेटों में गति होती है।

इम गतियों को रोकने के लिए एक बल काम करता है जिसे भुचुम्बकत्व कहते है इसी भुचुम्बकत्व की वजह से ही टेक्टोनिक प्लेट जिनसे भूपर्पटी का निर्माण हुआ है वो स्थिर रहती है और कही भी कोई गति नही होती।
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कहा जाता है कि शेषनाग के हजारो फन है भुचुम्बकत्व में हजारों मैग्नेटिक वेब्स है शेषनाग के शरीर अंत मे एक हो जाता है मतलब एक पूछ है भुचुम्बकत्व कि उत्पत्ति का केंद्र एक ही है । शेषनाग ने पृथ्वी को अपने फन पे टिका रखा है जो भुचुम्बकत्व की वजह से ही पृथ्वी टिकी हुई है।
शेषनाग के हिलने से भूकंप आता है भुचुम्बकत्व के बिगड़ने (हिलने) से भूकंप आता है।

#वैदिक_ग्रंथो में इसी #भुचुम्बकत्व को ही शेषनाग कहा गया है ।।

#विशेष:
क्रोड का विस्तार मैंटल के नीचे है अर्थात २८९० किमी से लेकर पृथ्वी के केन्द्र तक। किन्तु यह भी दो परतों में विभक्त है - बाह्य कोर और आतंरिक कोर।

बाह्य कोर तरल अवस्था में पाया जाता है क्योंकि यह द्वितीयक भूकंपीय तरंगों (एस-तरंगों) को सोख लेता है।

तो ये कह देना की पृथ्वी शेषनाग के फन पे स्थित है मात्र कल्पना नही बल्कि एक सत्य है कि पृथ्वी शेषनाग (भू-चुम्बकत्व) की वजह से ही टिकी हुई है या शेषनाग के फन पे स्थित है।

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Pandit Khushbu

तो गर्व से कहे आप सनातन धर्म हिन्दू की संतान है जो सत्य और विज्ञान पर आधारित है ।।

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